कुंदेरा कहते हैं, साम्यवादी स्वर्ग एक ऐसा स्थान होता जहां, “इंसान किसी मधुर संगीत रचना में एक स्वर के समान था, लेकिन यदि कोई स्वर की अपनी जिम्मेदारी से नहीं निभाता तो वह पूरी तरह अनुपयोगी और अर्थहीन हो जाता.
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कुंदेरा कहते हैं, साम्यवादी स्वर्ग एक ऐसा स्थान होता जहां, “ इंसान किसी मधुर संगीत रचना में एक स्वर के समान था, लेकिन यदि कोई स्वर की अपनी जिम्मेदारी से नहीं निभाता तो वह पूरी तरह अनुपयोगी और अर्थहीन हो जाता.